मन को शक्तिशाली बनाने के लिए आत्मा को ईश्वरीय स्मृति और शक्ति का भोजन दो
मन को शक्तिशाली बनाने के लिए आत्मा को ईश्वरीय स्मृति और शक्ति का भोजन दो।
मन को शक्तिशाली बनाने के लिए आत्मा को ईश्वरीय स्मृति और शक्ति का भोजन दो।
दृष्टि को अलौकिक, मन को शीतल, बुद्धि को रहमदिल और मुख को मधुर बनाओ।
ब्रह्मचर्य, योग तथा दिव्यगुणों की धारणा ही वास्तविक पुरूषार्थ है।
अपने विकारी स्वभाव-संस्कार व कर्म को समर्पण कर देना ही समर्पित होना है।
होली हंस बन अवगुण रूपी कंकड़ को छोड़ अच्छाई रूपी मोती चुगते चलो।
अपनी वृत्ति को श्रेष्ठ बनाओ तो आपकी प्रवृत्ति स्वत:श्रेष्ठ हो जायेगी।
संकल्प द्वारा भी किसी को दु:ख न देना-यही सम्पूर्ण अहिंसा है।
हर आत्मा के प्रति सदा उपकार अर्थात् शुभ कामना रखो तो स्वत:दुआयें प्राप्त होंगी।
सर्व बन्धनों से मुक्त होने के लिए दैहिक नातों से नष्टोमोहा बनो।
जानकार बनो तो समस्यायें भी मनोरंजन का खेल अनुभव होंगी।
रूह को जब, जहाँ और जैसे चाहो स्थित कर लो-यही रूहानी ड्रिल है।
आपके बोल ऐसे समर्थ हों जिसमें शुभ व श्रेष्ठ भावना समाई हुई हो।
जैसे आवाज में आना सहज लगता है वैसे आवाज से परे जाना भी सहज हो।
प्रभु प्रिय, लोक प्रिय और स्वयं प्रिय बनने के लिए सन्तुष्टता का गुण धारण करो।
इस संसार को एक अलौकिक खेल और परिस्थितियों को खिलौना मानकर चलो तो कभी निराश नहीं होंगे।
सर्वस्व त्यागी बनने से ही सरलता व सहनशीलता का गुण आयेगा।
सर्व के सहयोगी बनो तो स्नेह स्वत: प्राप्त होता रहेगा।
एक भी कमजोरी अनेक विशेषताओं को समाप्त कर देती है इसलिए कमजोरियों को तलाक दो।
एक दो के विचारों को रिगार्ड दो तो स्वयं का रिकार्ड अच्छा बन जायेगा।