स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करो तो विश्व परिवर्तन स्वत:हो जायेगा
स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करो तो विश्व परिवर्तन स्वत:हो जायेगा।
स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करो तो विश्व परिवर्तन स्वत:हो जायेगा।
परमात्म श्रीमत रूपी जल के आधार से कर्म रूपी बीज को शक्तिशाली बनाओ।
ज्ञान के अखुट खजानों के अधिकारी बनो तो अधीनता खत्म हो जायेगी।
मन से सदा के लिए ईष्या-द्वेष को विदाई दो तब विजय होगी।
सत्य को अपना साथी बनाओ तो आपकी नइया (नांव) कभी डूब नहीं सकती।
स्थूल सूक्ष्म कामनाओं का त्याग करो तब किसी भी बात का सामना कर सकेंगे।
आत्म स्थिति में स्थित होकर अनेक आत्माओं को जीयदान दो तो दुआयें मिलेंगी।
स्वयं निर्माण बनकर सर्व को मान देते चलो यही सच्चा परोपकार है।
विश्व कल्याणकारी बनना है तो अपनी सर्व कमजोरियों को सदाकाल के लिए विदाई दो।
कर्म के फल की सूक्ष्म कामना रखना भी फल को पकने से पहले ही खा लेना है।
विघ्नों रूपी पत्थर को तोड़ने में समय न गंवाकर उसे हाई जम्प देकर पार करो।
जो बीत चुका उसको भूल जाओ, बीती बातों से शिक्षा लेकर आगे के लिए सदा सावधान रहो।
अब प्रयत्न का समय बीत गया, इसलिए दिल से प्रतिज्ञा कर जीवन का परिवर्तन करो।
श्रेष्ठ पुरूषार्थ में थकावट आना-यह भी आलस्य की निशानी है।
सदा ईश्वरीय मर्यादाओं पर चलते रहो तो मर्यादा पुरूषोत्तम बन जायेंगे।
सच्चाई, सफाई को धारण करने के लिए अपने स्वभाव को सरल बनाओ।
एक सेकण्ड में व्यर्थ संकल्पों पर पूर्ण विराम लगा दो-यही तीव्र पुरूषार्थ है।
पवित्रता का व्रत सबसे श्रेष्ठ सत्यनारायण का व्रत है-इसमें ही अतीन्द्रिय सुख समाया हुआ है।
मान की इच्छा छोड़ स्वमान में टिक जाओ तो मान परछाई के समान पीछे आयेगा।
बापदादा की छत्रछाया के नीचे रहो तो माया की छाया पड़ नहीं सकती।