सदा रूहानी मौज का अनुभव करते रहो तो कभी भी मूंझेंगे नहीं
सदा रूहानी मौज का अनुभव करते रहो तो कभी भी मूंझेंगे नहीं।
सदा रूहानी मौज का अनुभव करते रहो तो कभी भी मूंझेंगे नहीं।
ऐसा सपूत बनो जो बाबा आपके गीत गाये और आप बाबा के गीत गाओ।
नि:स्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति से सेवा करने वाले ही सफलता मूर्त हैं।
अपने हर्षितमुख चेहरे से सर्व प्राप्तियों की अनुभूति कराना-सच्ची सेवा है।
हर परिस्थिति को उड़ती कला का साधन समझकर सदा उड़ते रहो।
एक `बाबा’ शब्द ही सर्व खजानों की चाबी है-इस चाबी को सदा सम्भालकर रखो।
अपनी रूहानी व्यक्तित्व को स्मृति में रखो तो मायाजीत बन जायेंगे।
व्यर्थ बातों में समय और संकल्प गवाना-यह भी अपवित्रता है।
अशरीरी स्थिति का अनुभव व अभ्यास ही नम्बर आगे आने का आधार है।
अपनी चलन और चेहरे से पवित्रता की श्रेष्ठता का अनुभव कराओ।
अपना दैवी स्वरूप सदा स्मृति में रहे तो कोई की भी व्यर्थ नजर नहीं जा सकती।
वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव करो और कराओ तो बचपन के खेल समाप्त हो जायेंगे।
अन्तर्मुखता से मुख को बन्द कर दो तो क्रोध समाप्त हो जायेगा।
स्थिति सदा खजानों से सम्पन्न और सन्तुष्ट रहे तो परिस्थितियाँ बदल जायेंगी।
सन्तुष्टता की सीट पर बैठकर परिस्थितियों का खेल देखने वाले ही सन्तुष्टमणि हैं।
सत्यता की विशेषता द्वारा खुशी और शक्ति की अनुभूति करते चलो।
सेवा का भाग्य प्राप्त होना ही सबसे बड़ा भाग्य है।
अभी का प्रत्यक्षफल आत्मा को उड़ती कला का बल देता है।
खजानों को सेवा में लगाना अर्थात् जमा का खाता बढ़ाना।