हर आत्मा को कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले वचन ही सत वचन हैं
हर आत्मा को कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले वचन ही सत वचन हैं।
हर आत्मा को कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले वचन ही सत वचन हैं।
करावनहार बाप की स्मृति से मैं पन को समाप्त करो।
तपस्या के बल से असम्भव को सम्भव कर सफलता मूर्त बनो।
प्रयोगी आत्मा बन योग के प्रयोग से सर्व खजानों को बढ़ाते चलो।
सिद्धि स्वरूप बनने के लिए हर संकल्प में पुण्य और बोल में दुआयें जमा करते चलो।
अपने रहम की दृष्टि से हर आत्मा को परिवर्तन करने वाले ही पुण्य आत्मा हैं।
तन और मन को सदा खुश रखने के लिए खुशी के ही समर्थ संकल्प करो।
सर्व प्राप्तियों को स्वयं में धारण कर विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष होना ही प्रत्यक्षता का आधार है।
संख्या एक में आना है तो सिर्फ ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखते चलो।
बाप और सर्व की दुआओं के विमान में उड़ने वाले ही उड़ता योगी हैं।
अपने सर्व खजानों को सफल करने वाले ही महादानी आत्मा हैं।
जिम्मेवारी सम्भालते हुए दोहरा जीवन रहने वाले ही बाप के समीप रत्न हैं।
अपने हर बोल, कर्म और दृष्टि से हर आत्मा को शान्ति, शक्ति व खुशी का अनुभव कराना ही महान आत्माओं की महानता है।
राजयोगी वह हैं जो सेकण्ड में सार से विस्तार और विस्तार से सार में जाने के अभ्यासी हैं।
परचिंतन और परदर्शन की धूल से दूर रहने वाले ही सच्चे अमूल्य हीरे हैं।
स्वयं के परिवर्तन से अन्य आत्माओं का परिवर्तन करना ही जीवनदान देना है।
जाननहार के साथ करनहार बन असमर्थ आत्माओं को अनुभूति का प्रसाद बांटते चलो।
विस्तार को न देख सार को देखने वा स्वयं में समाने वाले ही तीव्र पुरूषार्थी हैं।
हर एक की विशेषता को स्मृति में रख वफादार बनो तो संगठन एकमत हो जायेगा।