साधना बीज है और साधन उसका विस्तार है
साधना बीज है और साधन उसका विस्तार है। विस्तार में साधना को छिपा नहीं देना
साधना बीज है और साधन उसका विस्तार है। विस्तार में साधना को छिपा नहीं देना
बेहद की वैराग्यवृत्ति द्वारा साधना के बीज को प्रत्यक्ष करो
सेवाओं का उमंग छोटी-छोटी बीमारियों को मर्ज कर देता है
प्राप्तियों को याद करो तो दु:ख व परेशानी की बातें भूल जायेंगी।
बेहद की वैराग्यवृत्ति द्वारा साधना के बीज को प्रत्यक्ष करो।
संकल्प में भी किसी देहधारी तरफ आकर्षित होना अर्थात् बेवफा बनना।
जो स्वयं समर्पित स्थिति में रहते हैं सर्व का सहयोग भी उनके आगे समर्पित होता है।
आप इतने हल्के बन जाओ जो बाप आपको अपनी पलकों पर बिठाकर साथ ले जाए।
प्रसन्नता ही ब्राह्मण जीवन की व्यक्तित्व है तो सदा प्रसन्नचित रहो।
कर्मभोग का वर्णन करने के बजाए, कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते रहो।
ज्ञान धन से भरपूर रहो तो स्थूल धन की प्राप्ति स्वत: होती रहेगी।
किसी भी प्रकार की अर्जी डालने के बजाए सदा राजी रहो।
उमंग उत्साह के पंखों द्वारा सदा उड़ती कला की अनुभूति करते चलो।
जब हर कर्म यथार्थ और युक्तियुक्त हो तब कहेंगे पवित्र आत्मा।
दिल की महसूसता से दिलाराम बाप की आशीर्वाद लेने के अधिकारी बनो।
महादानी वह है जिसके संकल्प और बोल द्वारा सबको वरदानों की प्राप्ति हो।
याद बल द्वारा दु:ख को सुख में और अशान्ति को शान्ति में परिवर्तन करो।
विरोध माया से करना है दैवी परिवार से नहीं।