खुशी को कायम रखने के लिए आत्मा रूपी दीपक में ज्ञान का घृत रोज डालते रहो
खुशी को कायम रखने के लिए आत्मा रूपी दीपक में ज्ञान का घृत रोज डालते रहो।
खुशी को कायम रखने के लिए आत्मा रूपी दीपक में ज्ञान का घृत रोज डालते रहो।
किसी की कमी, कमजोरियों का वर्णन करने के बजाए गुण स्वरूप बनो, गुणों का ही वर्णन करो।
अपने श्रेष्ठ भाग्य के गुण गाते रहो, कमजोरियों के नहीं।
सदा आत्म अभिमानी रहने वाला ही सबसे बड़ा ज्ञानी है।
जो सदा ज्ञान का सिमरण करते हैं वे माया की आकर्षण से बच जाते हैं।
औरों के मन के भावों को जानने के लिए सदा मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहो।
आकृति को न देखकर निराकार बाप को देखेंगे तो आकर्षण मूर्त बन जायेंगे।
हर बात प्रभू अर्पण कर दो तो आने वाली मुश्किलातें सहज अनुभव होंगी।
प्रेम से भरपूर ऐसी गंगा बनो जो आपसे प्यार का सागर बाप दिखाई दे।
स्वयं की कर्मेन्द्रियों पर सम्पूर्ण राज्य करने वाले ही सच्चे राजयोगी हैं।
सर्व बातों में न्यारे बनो तो परमात्म बाप के सहारे का अनुभव होगा।
विघ्नों से घबराने के बजाए पेपर समझकर उन्हें पार करो।
अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने के लिए अपने शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित रहो।
कोई भी बात को फील करना-यह भी फेल की निशानी है।
अपने को सदा प्रभू की अमानत समझकर चलो तो कर्म में रूहानियत आयेगी।
अपना सरल स्वभाव बना लेना – यही समाधान स्वरूप बनने की सहज विधि है।
आत्मिक दृष्टि-वृत्ति का अभ्यास करने वाले ही पवित्रता को सहज धारण कर सकते हैं।