हमें चाहि
हमें चाहिए – स्वच्छ, सुन्दर, शुद्ध, हवा.
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प्रदुषण जो तेजी से बढ़ रहा है, नई नई बीमारियाँ पैदा कर रहा है.
कंपनीयो की चिमनियों से निकल रहा है धुआं, ये है इंसानों की ज़िंदगी के लिए एक बड़ा जुआ.
नित नए हो रहे अविष्कार प्रदुषण बढ़ा रहे लगातार, रोकना है अगर प्रदुषण बढ़ने की गति, तो उपयोग में लानी होगी अपनी मति.
कुछ पाने के लिये हमने कीमत कितनी चुकाई, अपनी सांसो को खुद हमने जहेरली हवा दिलाई.
सांसो को भी मिल नहीं रहा शुद्ध हवा का झोंका, सोचों कोन कर रहा है किसके साथ धोका.
प्रदुषण बढ़ रहा लगातार, फैक्ट्रिया जो खुल रही कई हज़ार.
विकास और विज्ञान की ये कैसी हवा आयी, खुद के हाथो से हमने खुद की चिता सजाई.